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क्यूँ चले गये !

बेमौसम बरसात की तरह रूह को भीगा कर चले गये
सर्द पड़ चुके शोलों को वो फिर भड़का कर चले गये !
माना के दिल से चाहा था अरसा हुआ उस बात को अब
अबकी आये तो वही पुराना ज़ख़्म हरा कर चले गये !
आगे बढ़ चुके हैं हम भी, वो भी, और हमारी तक़दीरें भी
क्यूँ स्याह अंधेरी रात में फिर शमा जला कर चले गये !
ना, अब नहीं मानेंगे, ना देंगे माफ़ी, करना है जो कर लें वो
हद्द कर दी थी जब नज़र फेर यूँ हाथ छुड़ा कर चले गये !
होता ग़र इश्क़ जो गहरा, कभी ना जाते यूँ हमसे दूर
ज़रा सी बात पे वो कैसे सब रिश्ते भुला कर चले गये !
भूल ही गया था हसीन चेहरा, वो चंचल अदाएं ज़ालिम
झलक दिखा के वही मोहब्बत याद दिला कर चले गये !
तौबा की हमने खाई क़सम थी अब ना देंगे दिल किसी को
जाते जाते शोख़ नज़र के फिर तीर चला कर चले गये !
बेमौसम बरसात की तरह रूह को भीगा कर चले गये
सर्द पड़ चुके शोलों को वो फिर भड़का कर चले गये !