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वक्त

वक्त का अब क्या कहिए बहुत रंग बदलता है
तेज़ ना धीमा कभी अपनी ही गति से चलता है
कम्बख़्त कटता नहीं जब कोई विपदा आन पड़े
चाहो के थम जाए थोड़ा तब तेज़ी से निकलता है
बादशाहों को फ़क़ीरी बेघरों को राज थमा दे
कायनात में सिर्फ़ वक्त का सिक्का चलता है
देखें हैं ज़माने ने बेशुमार दावे करने वाले नादान
वक्त सब का अहंकार सब का घमंड कुचलता है
जितना उड़ लें धरती पे आ ही जाते हैं देर सवेर
ग़ुलाम हैं वक्त के सब यहाँ किसका ज़ोर चलता है
कभी ख़ुशी कभी माहौल गमहींन बना देता है
वक्त के आगे हर तूफ़ान अपना रुख़ बदलता है
थोड़ा हताश थोड़ा मजबूर है हर बाशिंदा धरती पे
वक्त के हाथों सबका नसीब बनता बिगड़ता है
जो भी हो जैसा भी हो बस लगे रहो तन मन से
जितना ख़राब हो इकदिन सब का वक्त बदलता है