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विस्माद

कैसा हसीन ख़्वाब कैसा यह विस्माद है
कुदरत का हमसे हो रहा अनोखा संवाद है
सदा प्रसन्न रहो स्पष्ट संदेश है कायनात का
अभागे हैं इल्म नहीं जिन्हें इतनी सी बात का
पूछो फ़ूल चाँद सूरज हवा बादल और नदियों से
कुदरत के नियम का कर रहें हैं पालन सदियों से
बेज़ुबान जानवरों की भी प्रकृति से बातचीत है
दुखी हैं इंसान जो कुदरत के क़ानून के विपरीत है
पदार्थ और परमार्थ का ख़ज़ाना बेहिसाब मौजूद है
नासमझ इंसान गहरी निद्रा में इसके बावजूद है
निरर्थक कटा जीवन अज्ञानता और आक्रोश में
अंधकार त्याग आ जाओ नियति की आग़ोश में
समर्पण और संघर्ष का जब सही संतुलन बनेगा
जीवन में आ जायेगी बाहार चित्त प्रसन्न रहेगा